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बेगूसराय के राकेश बायोफ्लॉक तकनीक से कर रहे मछली पालन, लागत से दोगुना हो रही कमाई, जानें पूरा डिटेल

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बेगूसराय के घाघरा पंचायत के एक छोटे से कस्बे करकौली में नई तकनीक से मछली पालन करवाया जा रहा है। यह बायोफ्लॉक व इंडोनेशियाई तकनिक है, उसका इस्तेमाल कर नरेश महतो अपनी जीवन संवारने में लग गए हैं। उनके द्वारा निर्माण किए गए कृत्रिम तालाब में कई प्रजातियों के साथ देशी मांगुर मछली की विलुप्त प्रजाति भी आसानी से देखी जा सकती है।

18 लाख की लागत से बनवाया गया टैंक: नरेश द्वारा बताया गया कि अगस्त 2021 में उन्होंने अपने दरवाजे की भूमि पर ही 18 लाख धनराशि की लागत से 9 बायोफ्लॉक कृत्रिम तारोपोलिन टैंक को बनवाया। जानकारी के अभाव के कारण से आरंभिक दिनों में बहुत परिश्रम करना पड़ा। मछली का बीज खरीदने में चूक हुई थी, उससे उन्हें काफी दिलाते हुई थी।

संकेतिक चित्र

नरेश द्वारा बताया गया कि किशनगंज से इलेक्ट्रिक ट्रेड में डिप्लोमा करने के पश्चात उसने पावर हाउस बखरी में लगभग सात वर्षो तक कार्य किया। इसी समय उसने यूट्यूब पर मछली पालन की यह तरकीब देखी। उसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ इसी व्यापार में विचार किया। फिर मुजफ्फरपुर के केंद्रीय मात्यसिकी अनुसंधान केंद्र से छह दिन का ट्रेनिंग प्राप्त किया तथा जुट गए।

5 तरीके की मछलियां पाल कमा रहा दोगुना कमाई
उन्होंने बताया कि 23*23 फीट के टैंक में पांच तरीके की मछलियां पाल रहे हैं। उसमे फंगास, आंध्रा, तिलापिया, कबई तथा देशी मांगर सम्मिलित हैं। एक टैंक में लगभग 9 विवंटल मछलियो को पाला जा सकता हैं। मछली का विचरा, पानी, ऑक्सीजन, भोजन, मजदूरी इत्यादि पर लगभग 40 हजार रुपए खर्च आते हैं। छह माह में 200-700 ग्राम की मछलियां बेचने के लायक तैयार हो जाती हैं। उसके बाजार भी हमारे यहां सरलता से उपलब्ध है। इन मछलियों को लोग थोक में ग्राहक ले जाते हैं। उससे पहली बार में लगभग एक लाख 20 हजार रुपए की कमाई हुई। इस प्रकार से छह महीने को लागत से दोगुना मुनाफा हुआ।

क्या है मछलीपालन की बायोफ्लॉक तकनीक: इस तरकीब के बारे में इनफॉर्मेशन देते हुए नरेश द्वारा बताया गया कि किसान बिना तालाब की खुदाई किए कृत्रिम टैंक में मछली का पालन कर सकते हैं। सिस्टम में बायोफ्लॉक बैक्टीरिण का उपयोग होता है। यह बैक्टीरिया मछलियों के मल तथा फालतू भोजन को प्रोटीन सेल में बदल देते हैं। यह प्रोटीन सेल मछलियों के भोजन का कार्य करते हैं।

नरेश द्वारा बताया गया कि ठंड के मौसम में तापमान मेंटेन करना एक बड़ी चुनौती होती है। चार-पांच दिनों पर टैंक के पानी में अमोनियम एल्केनेटी, पीएच तथा टीडीएस मेंटेन करना पड़ता है। प्रत्येक हफ्ता टैंक से 20% पानी निकालकर ताजा पानी डालना पड़ता है। मछली ठंड में कम व गर्मी के मौसम में अधिक बढ़ती है।

यहां मछली पालन के हेतु अत्याधुनिक तरकीब से ऑक्सीजन सप्लाई कारवाई जाती है। इन सबके अलावा फर्म में 24 घंटे बिजली उपलब्धता के हेतु सोलर लाइट, इन्वर्टर, जेनरेटर एवम विद्युत कनेक्शन करवाया हुआ है। ताकि एनवायरमेंट को हमेशा मछली पालन के मुताबिक़ बनाकर रखा जा सके।

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