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बिहार की पुष्पा झा 20000+ लोगों को मशरूम की खेती करने की दे चुकी हैं ट्रेनिंग, “अभिनव किसान पुरस्कार” से भी हो चुकी हैं सम्मानित

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बिहार राज्य के दरभंगा जिले के बलभद्रपुर गांव की रहनेवाली 47 वर्षीय पुष्पा झा वर्ष 2010 से मशरूम की खेती कर रही हैं। फिलहाल, उनके पास हर दिन लगभग 10 किलो मशरूम का उत्पादन होता है, जिसे वह 100 से 150 रुपये प्रति किलो की दर से बेचती हैं। और हर दिन वह कम से कम 1000-1500 रुपये कमा लेती है। उनके पति रमेश एक शिक्षक हैं। पुष्पा बताती हैं, आज से दस साल पहले यहाँ लोगों को मशरूम की खेती के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था। मेरे पति को किसी ने इसके बारे में बताया। वह चाहते थे कि मैं घर पर खाली बैठे रहने से अच्छा कुछ काम करूं। फिर मैं समस्तीपुर के पूसा विश्वविद्यालय से मशरूम की खेती की ट्रेनिंग लेने का फैसला किया। वह बताती हैं की, जब ट्रेनिंग लेने वहां पहुंची तो सभी सीटें भर चुकी थीं। लेकिन रमेश ने अधिकारियों से अनुरोध किया। और अंत में वे मान गए फिर हम दोनों ने एक साथ 6 दिनों की ट्रेनिंग पूरी की।

पुष्पा बताती हैं, आजकल तो मशरूम की खेती किसी भी मौसम में हो जाती है। लेकिन उस समय गर्मी में यह संभव नहीं था और हमने जब ट्रेनिंग ली जून का महीना था और गर्मी काफी थी। इसलिए हमने सितंबर 2010 से इसकी खेती शुरू कर दी। वह बताती हैं, हम शुरू में पूसा विश्वविद्यालय से ही 1000 बैग लाए और दो कट्ठे के खेत में झोपड़ी बनाकर मशरूम की खेती शुरू की। एक बैग में करीब 800 से 1000 ग्राम मशरूम थे। उस वक्त हमारे इलाके में लोग मशरूम के बारे में जानते ही नहीं थे। हम, लोगों को मशरूम मुफ्त में दे देते थे कि पहले खा कर देखिए फिर लीजिए। लेकिन कई लोग इसे जहरीला मानते थे और फेंक देते थे। लेकिन पुष्पा ने हिम्मत नहीं हारी फिर, उन्होंने 200-200 ग्राम का पैक बनाकर सब्जी बेचने वाली महिलाओं को बेचने के लिए देना शुरू किया ।

वह आगे बताती हैं, हमने उनसे कहा कि मशरूम बिकने के बाद हमें पैसे दीजिए। अगर पैकेट नहीं बिकता था, तो उसे वापस भी ले लेते थे फिर अगले दिन उन्हें नया मशरूम देते थे। इस तरह, धीरे-धीरे हमारी अच्छी पकड़ हो गई और आज हमें अपने उत्पाद बेचने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है। पुष्पा बताती हैं कि मशरूम की खेती करीब 50 हजार रुपये से शुरू किया था। वर्ष 2011 में वह मशरूम बीज की ट्रेनिंग के लिए फिर से पूसा विश्वविद्यालय गईं। वह बताती हैं, ट्रेनिंग एक महीने की थी। इसी बीच गांव के कुछ लोगों ने मेरे फार्म को जला दिया। लेकिन मेरे पति ने मेरे वापस लौटने से पहले ही, दूसरा फार्म तैयार कर दिया।
पुष्पा बताती हैं, शुरुआत के पांच साल मेरे लिए काफी कठिन रहे। लेकिन आज हमारा उत्पाद दरभंगा के स्थानीय बाजार के अलावा, बिहार के दूसरे जिलों में भी जा रहा है। हम पूसा विश्वविद्यालय के जरिए कई लोगों को मशरूम सुखाकर भी बेचते हैं। जिससे बिस्कुट, टोस्ट, चिप्स जैसी कई चीजें बनाई जाती हैं।
जो मशरूम नहीं बिक पता उसका वह अचार बना देती हैं।

मशरूम की खेती में उल्लेखनीय योगदान के लिए पुष्पा को साल 2017 में पूसा विश्वविद्यालय द्वारा ‘अभिनव किसान पुरस्कार’ समेत कई अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनकी सफलता को देख अन्य महिलाओं को भी इससे जुड़ने की प्रेरणा मिली। पुष्पा ने साल 2015 से महिलाओं को ट्रेनिंग देने की शुरुआत की। वह बताती हैं, मैं महिलाओं को मशरूम की फ्री ट्रेनिंग देने के अलावा, बीज भी देती हूं और कई मौकों पर जरूरतमंद महिलाओं की आर्थिक मदद भी करती हूं। मैं अबतक 20 हजार से अधिक लोगों को ट्रेनिंग दे चुकीं हूं।

वह बताती हैं, ट्रेनिंग देने के लिए मुझे कई संस्थाओ द्वारा आमंत्रित किया जाता है। मैं स्कूल एवं कॉलेज की लड़कियों से लेकर दरभंगा सेंट्रल जेल के कैदियों तक को ट्रेनिंग दे चुकी हूं। हालांकि पुष्पा, 10 दिनों की ट्रेनिंग देती हैं। पहले उनके पास सिर्फ महिलाएं ही आती थीं, लेकिन अब कई पुरुष भी ट्रेनिंग के लिए आ रहे हैं। पुष्पा कहती हैं, आज मेरा बेटा इलाहाबाद में हॉर्टिकल्चर की पढ़ाई कर रहा है। जैसे ही उसकी पढ़ाई पूरी हो जाएगी। हम अपने मशरूम की खेती को एक कंपनी का रूप देना शुरू कर देंगे। फिलहाल, हम अपने उत्पाद को “मशरूम किसान पुष्पा झा” के नाम से बेचते हैं। वह कहती हैं, मैं खुद एक महिला हूं और समाज में महिलाओं की स्थिति को अच्छे से समझती हूं। मेरा उद्देश्य है महिलाओं को मशरूम की खेती से जोड़कर उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाना।

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