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कभी जनता चौक पर बेचते थे कुल्फी, संघर्ष और मेहनत के बदौलत खड़ा किया करोड़ों का व्यापार

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जब सपना पूरा करने का जुनून हो तो कोई उसे रोक नहीं सकता है। ओल्ड मुंबई आइसक्रीम की शुरुआत करने वाले रामबाबू शर्मा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। शुरुआती दौर में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। एक जगह से दूसरी जगह भटकते रहे। कई अलग-अलग नौकरियां भी की। सबकुछ आजमाने के बाद उन्होंने अपनी पसंदीदा  आइसक्रीम का बिजनेस  शुरू किया। आज उनकी ‘ओल्ड मुंबई आइसक्रीम’ महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना राज्यों में एक प्रतिष्ठित ब्रांड है। 6 करोड़ से ज्यादा इसका टर्नओवर है। यह ब्रांड रोजाना पांच टन आइसक्रीम बनाता और बेचता है।

सन् 1978 में राजस्थान के रहनेवाले रामबाबू शर्मा, सेना में भर्ती के लिए इंटरव्यू पास हो करने के बाद भी उनके पिता उन्हें नौकरी करने से मना कर दी। किसी और नौकरी की तलाश के लिए बोले। इससे रामबाबू निराश हो गए और उन्होंने वापस घर न जाने का फैसला किया। और मुंबई रहने के लिए आ गए वहां लोग बड़े-बड़े बर्तनों को सिर पर रखकर आइसक्रीम बेचते थे। उन्हें यह काम अच्छा लगा और फिर वह भी गेटवे ऑफ इंडिया पर आइसक्रीम बेचने लगे।

Pic- The Better India

उन्होंने एक साल तक आइसक्रीम बेची। लेकिन जब ज्यादा फायदा नज़र नहीं आया, तो काम छोड़कर इचलकरंजी (महाराष्ट्र) चले गए और एक फोटो स्टूडियो में काम करना शुरू कर दिया। नेत्रपाल कहते हैं, “दोनों ही नौकरियों में उन्हें वह खुशी नहीं मिली, जिसकी उन्हें तलाश थी।” एक शाम जनता चौक नामक जंक्शन पर आइसक्रीम खाने के लिए काफी भीड़ देखी। एक बार फिर उन्होंने आइसक्रीम बेचने का मन बना लिया, लेकिन इस बार आइसक्रीम वह खुद बना रहे थे। 

रामबाबू शर्मा के बेटे नेत्रपाल कहते हैं, वह शाम 5 बजे तक स्टूडियो में काम करने के बाद शाम 6 बजे से आधी रात तक जनता चौक पर आइसक्रीम बेचते। स्वाद और गुणवत्ता ही उनकी इस कुल्फी की खासियत थी, धीरे-धीरे शर्माजी की कुल्फी मशहूर होने लगी और शर्माजी बन गए शर्माजी कुल्फीवाले।

लोग उनकी कुल्फी को ‘शर्माजी की कुल्फी’ कहने लगे। धीरे-धीरे यह बिजनेस बढ़ता गया । सन् 1981 में, उन्होंने औपचारिक रूप से अपने बिजनेस को नाम दिया ‘ओल्ड बॉम्बे आइसक्रीम’।
उन्होंने सिर्फ 2000 रुपये के निवेश के साथ इस बिजनेस को शुरू किया,  इचलकरंजी ओल्ड बॉम्बे आइसक्रीम मुख्यालय में रामबाबू की पुरानी कड़ाही और करछी भावी पीढ़ी के लिए सुरक्षित रखी गई है।नेत्रपाल कहते हैं, पिताजी ने हमेशा क्वालिटी को बनाए रखने पर ज़ोर दिया और अपने ग्राहकों के साथ ईमानदार रहने के लिए कहा।

रामबाबु अपने बिज़नेस में पूरी तरह से रम चुके थे। लेकिन इसके बावजूद उनके बिजनेस को एक बड़ा झटका लगा। सन् 1995 में एक अनौपचारिक नियम के चलते वह अब सड़क के किनारे अपनी दुकान नहीं लगा सकते थे। इस नए नियम की वजह से 20 दिनों तक आइसक्रीम नहीं बेच पाए। यह उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया था। फिर उन्होंने 1997 में इचलकरंजी में एक छोटी सी दुकान पट्टे पर ली। जिसपर हमेशा ग्राहकों की भीड़ लगी रहती। मेरे पिता नहीं चाहते थे कि मैं उनका बिज़नेस संभालू। उन्होंने मुझे हमेशा अपनी नौकरी करने की सलाह दी।

 
नेत्रपाल ने कुछ समय तक नौकरी की। लेकिन 2010 में उनके पिता की तबियत खराब हुई, तो वह वापस लौट आए। फिर 2011-12 में हमने सांगली में भी एक दुकान खोल ली।हांलाकि बिज़नेस में ग्रोथ ज्यादा नहीं थी, लेकिन रामबाबू उससे खुश थे।आज भी सारी आइसक्रीम इचलकरंजी रसोई में ही बनती हैं और फिर वहां से अलग-अलग केंद्र में भेजी जाती हैं। उन्होंने बताया, हमारी आइसक्रीम की कीमत कभी भी ज्यादा नहीं रही।शुरुआती दौर में केसर कुल्फी एक रुपये में मिलती थी। आज इसकी कीमत 30 रुपये है। नेत्रपाल कहते हैं, मुझे खुशी होगी अगर मेरे बच्चे इस बिजनेस को आगे लेकर जाएं।

Source- The Better India

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