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दो इंजीनियर भाईयों ने नौकरी छोड़ शुरू की इस फूल की खेती को, आज कमा रहे लाखों रूपए महीने
खेती कमाई का एक बहुत बेहतरीन जरिया बन चुका है। भारत देश के किसानों की हालत पहले के तुलना में अब बहुत ही सुधर चुकी है और अच्छी भी हो गई है। तो वही युवाओं का रुझान भी अब कृषि क्षेत्र की ओर बढ़ते जा रहा हैं और साथ ही एक अच्छी डिग्री लेने के बावजूद भी वह कृषि के क्षेत्र में अपना भविष्य बना रहे हैं और अच्छा लाभ भी कमा रहे है। इनके 2 मुख्य उदाहरण हैं मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के छिंदवाड़ा के रहने वाले दो भाई शुभम रघुवंशी (Subham Raghuvansi) और सौरव रघुवंशी (Saurav Raghuvanshi)। सौरभ इंजीनियर की निजी कंपनी की नौकरी छोड़ झरबेरा में फूलों की खेती शुरू किए है।
झरबेरा फूल के पॉलीहाउस में स्टडी कर शुरू किए है खेती
तत्काल अवस्था में दोनों भाई फूल की खेती के माध्यम सेकर लाखों की कमाई को कर रहे हैं। शुभम और सौरभ ना केवल अच्छा कमा रहे हैं बल्कि अन्य लोगों को भी अच्छा रोजगार दे रहे हैं। वर्ष 2019 के शुरू में दोनों में भाई झरबेरा फूल के पॉलीहाउस में स्टडी किया करते है और अपने 28 एकड़ की खेत के एक हिस्से में फूल की खेती करना अभी शुरू किया है। जानकारों की मानें तो यह काली मिट्टी की जमीन सारे फूलों के लिए ही बहुत अच्छा माना जाता है। शुभम और सौरभ को ऐसी मिट्टी इकट्ठा करने में करीब 2.5 महीने का बहुतम समय लगा है।
लॉकडाउन के वज़ह से हुई व्यपार मैं दिक्कत
श्रीशुभम और श्रीसौरव जी खेत को पुनः तैयार कर पॉलीहाउस बनवाकर झरबेरा का प्लांटेशन शुरू कर दिया है। हालांकि लॉकडाउन लगने के वजह से फूलों की अच्छी बिक्री नहीं हो पाई परंतु इसके बाद में भिन्न-भिन्न स्थानों पर दुकान खोलने की वजह से फूलों की कीमत बढ़ गई और अच्छी बिक्री होने लगी। साथ ही आपको बता दें कि झरबेरा फूलों के प्लांट हालैंड से ही आते हैं। इस फूलों के लिए संतुलित तापमान और शुद्ध जल की बहुत आवश्यकता होती है।
एक एकड़ जमीन में दोनों भाइयों ने 25 हजार पौधे लगाए, जिसमें वें फिल्टर कर ड्रिपिंग के द्वारा प्रत्येक दिन 24 मिनट जल देते है।मार्केट में इसकी मूल्य लगभग 6 से लेकर 10 रूपये के बीच है। हैदराबाद से यह फूल देश के सभी बड़े शहर मंबई दिल्ली, चेन्नई, बंगलौर, इंदौर में भेजी जाती है, जहाँ इन फूलो की अच्छी डिमांड है। शादियों और कार्यक्रम के समारोह के आयोजन में इस फूल का मूल्य 20 रूपये तक होने की बात कही जा रही है है। केवल 18 माह में लॉकडाउन जैसे विकट और विपरीत परिस्थिति में हीं उन्होंने अपने पूरे प्लान में लगी 80 लाख रुपये की लागत को निकाल लिए।
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