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मां-पत्नी के साथ मिलकर की आंवले की खेती, अब सलाना कमा रहे हैं 10 लाख रुपए, संघर्षों से भरा रहा सफर
राजस्थान के भरतपुर जिले के इस किसान की कहानी जो आंवला की खेती कर कामयाबी की नई इबारत लिख रहे हैं। जिले की कुम्हेर तहसील का एक गांव पैंघोर के लोग घर में ही किसी न किसी रोजगार के धंधे से जुड़े हुए हैं। कहानी इसी गांव के किसान अमर सिंह की जो गरीबी से जूझ कर आज कामयाबी की मिसाल पेश कर रहे हैं। कभी घर के खर्च की जिम्मेदारी संभालने के लिए अमर पारंपरिक खेती के साथ माल ढुलाई के लिए छोटे वाहन भी चलाते थे। आज अमर गांव के कई महिलाओं को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।
हुआ यूं कि अमर एक दिन रास्ते से सफर कर रहे थे। मुख लगी थी लिहाजा अमर दुकान पर खाने के लिए रुक गए। दुकानदार ने समोसे को कागज में लपेट कर दिया। अमर को हमेशा किसी भी कागज के टुकड़े को पढ़ने की आदत थी जब इन्होंने अखबार के टुकड़े में आंवले की खेती और उससे होने वाले लाभ के बारे में पढ़ा। यहीं से आंवले की खेती के लिए मन बना लिया। आंवले की खेती के लिए मां और पत्नी से अपना विचार साझा किया तब उनकी मां ने खेत खराब होने के डर से उन्हें इसके लिए मना करने की सलाह दी लेकिन काफी मशक्कत के बाद घर वाले भी आंवले की खेती के लिए सहमत हो गए।
आंवले के बाग लगाने के लिए अमर ने पौधों का इंतजाम हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट से किया। लोगों ने उस समय अमर को आंवले की खेती ना कर बकरी पालन कर और मछली पालन करने की सलाह दी। फिर भी अमर ने बिना कुछ सोचे ही 19 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से आंवले के पौधों का इंतजाम किया। आंवले के पौधे को मां-पत्नी ने बड़ी मेहनत और उत्साह के साथ विकसित किया।
शुरुआत में 6 बीघे में आंवला का पौधा लगाया फिर पौधे खेतों में लहलहा उठें। हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट मैं खुद आकर खेतों में सर्वेक्षण किया। अमर आंवलों को कच्चा ही बेचा करते थे, तो सालाना 3-4 लाख रुपए तक आमदनी हो जाती है। आंवला खरीदने वाले लोग अमर सिंह से मुरब्बा और अचार खरीदने की डिमांड करते थे। देशी तरीके से 25 महिलाएं बिना किसी केमिकल का इस्तेमाल किए आंवले को उबालने से लेकर उसे चाशनी में डुबाने तक का काम करती हैं। अब अमर सलाना करीब 10 लाख रुपए तक की कमाई करते हैं। अमर किसानों के रोल मॉडल बन गए हैं।
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