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बिहार का दार्जिलिंग बना किशनगंज, भारत का इकलौता जिला जहां दिखता है चाय बागान, सरकार से मिलेगा 50 प्रतिशत अनुदान
पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार कहा जाने वाला किशनगंज बिहार का इकलौता ऐसा जिला है, जहां चाय के बागान देखने को मिलता हैं। सिलीगुड़ी, दार्जिलिंग से भौगोलिक निकटता से मौसम भी सुहाना बना रहता है। पिछले कुछ वर्षों से यहां लगातार चाय की खेती का रकबा में वृद्धि होती जा रही है। इससे हजारों लोगों को रोजगार मिलने के साथ ही जिले में समृद्धि भी आई है।
हालांकि यह वर्ष 1992 में 5 एकड़ में चाय की खेती शुरू हुई थी जो बढ़कर आज 10 हजार एकड़ तक पहुंच गया है। अभी जिले में नौ निजी और एक सरकारी टी-प्रोसेसिंग प्लांट चल रहे हैं। डेढ़ हजार टन से भी अधिक चायपत्ती बाजार में जा रही है। वर्ष 1992 में ‘टी बोर्ड ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट में किशनगंज के मौसम को चाय बागान के अनुकूल बताया गया था।
इस रिपोर्ट को देखने के बाद उद्यमी डॉ. राज करण दफ्तरी ने उसी वर्ष जिले के पोठिया में पहली बार 5 एकड़ में चायपत्ती की खेती की शुरूआत की थी। उसके बाद से जिले में निरन्तर चाय की खेती का रकबा बढ़ता गया। बिहार टी प्लांटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगाल एवं असम की तर्ज पर ही यदि बिहार सरकार भी चाय की खेती को बढ़ावा दे तो राज्य की अर्थव्यवस्था में किशनगंज जिला अग्रणी हो सकता है। यहां चाय उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार को वर्ष 1995 की औद्योगिक नीति लागू करना चाहिए। किशनगंज जिले के 3 प्रखंड किशनगंज, पोठिया एवं ठाकुरगंज में करीब 5000 किसान चायपत्ती की खेती से जुड़े हैं।
यहां की चाय की खुशबू देश के अलावा विदेशों में फैलने लगी है। एक एकड़ में चायपत्ती की खेती शुरू करने में लगभग एक लाख से सवा लाख रुपए की खर्च आती है। पहले तीन वर्ष पौधे विकसित होने में लगते हैं। उसके बाद चौथे साल से प्रतिवर्ष न्यूनतम 25 हजार रुपये आमदनी होने लगती है। अगले 5 वर्षो में पूरी लागत वसूल हो जाती है। वहीं आठवें साल से मिलने वाली रकम शुद्ध मुनाफा होता है, जो अगले 50 वर्षों तक मिलता रहता है।
इस दौरान पौधों के रखरखाव पर मामूली खर्च आता है। विशेष फसल उद्यानिक विकास योजना के अंतर्गत इस बार चाय की खेती को शामिल किया गया है। चाय के नए पौधे लगाने वाले किसानों को 50 प्रतिशत का अनुदान दिया जाएगा। किशनगंज में 75 हेक्टेयर का लक्ष्य है। 700 आवेदन आए हैं।
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