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लंदन की नौकरी छोड़ दिल्ली की नवधा पर्यावरण के लिए कर रही है काम, पढ़ें इनकी कहानी

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मानव गतिविधियों और क्रियाकलापों के चलते आज विश्व भर में तापमान में इजाफा हो रहा है और जलवायु परिवर्तन से मानव जीवन पर इसका बुरा असर देखने को मिल रहा है। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी इंसान इसके प्रति गंभीर नहीं है। कहानी एक ऐसी लड़की थी जो लोगों के लिए मिसाल बन गई है। जलवायु परिवर्तन को लेकर बहुत संजीदा यह लड़की लंदन की नौकरी छोड़ दिल्ली में पर्यावरण के प्रति अपनी छाप छोड़ रही है।

नवधा दिल्ली में पली-बढ़ी है। नवधा की उम्र 34 साल है। मां समाजसेविका है। पिता मीडिया कर्मी है। दिल्ली से ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद मास्टर्स डिग्री के लिए लंदन चली गई। लंदन में पढ़ाई की और 3 वर्षों तक वहां नौकरी भी की। फिर मन में ख्याल आया कि भारत में इससे ज्यादा समस्या है और वहां काम करना बेहद जरूरी है। फिर किया था नवधा स्वदेश लौट आईं।

भारत आकर नवधा परपस के साथ काम करना शुरू कर दी। बता दें कि परपस एक ग्लोबल संस्था है। साल 2015 से ही यहां वह कैंपेनर डायरेक्टर के पद पर सेवा दे रही है। यह संस्था जलवायु परिवर्तन, सेक्सुअल रिप्रोडक्टिव हेल्थ और बीते 3 वर्षों से कोविड-19 पर काम कर रही है।

साल 2015 वह वक्त था, जब दिल्लीवासी प्रदूषण की समस्या से घिरे हुए थे। प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गई थी। इसलिए उनकी संस्था और उन्होंने मिलकर हेल्प दिल्ली ब्रिद अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के जरिए डोर टू डोर जाकर उन्होंने लोगों को वायु प्रदूषण और उसके सेहत से जुड़ी तमाम जानकारियों को लोगों को बारीकी से समझाया। साथ ही सरकारों के साथ कंधा मिलाकर पॉलिसी मेंकिंग पर भी काम किया। आज की तारीख में इनके पास 15 कैंपेनर है। दिल्ली के साथ मुंबई, बिहार और यूपी में भी ये काम कर रहे हैं। दूसरी संस्थाओं के साथ मिलकर नवम सोशल इश्यू पर काम करते हैं।

दिल्ली में जब प्रदूषण उच्च स्तर तक पहुंच जाता है तो कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की स्थिति भुखमरी जैसी हो जाती है। मजदूरों के हक के लिए नवधा सरकारों के साथ मिलकर काम करती है।

देश में जलवायु परिवर्तन को लोग अछूत मानते हैं। यहां के लोगों को लगता है कि जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिकों का मसला है। लेकिन वास्तविकता यह है कि यह हमारी जिम्मेदारी और जवाबदेही है। दूसरे देशों में जलवायु परिवर्तन को लेकर बड़े स्तर पर काम चल रहा है लेकिन हमारे देश में जलवायु परिवर्तन पर लोग बात करने से भी इतराते हैं। इंसानों की बढ़ती आवश्यकताओं ने पर्यावरण को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है इसलिए कारण और समस्या दोनों के जिम्मेदार हम ही हैं।

कैंपेनर के तौर पर नवधा मल्होत्रा लोगों को कहती कि पर्यावरण में किसी एक की नहीं बल्कि सभी लोगों की साझी समस्या है। सबसे ज्यादा गरीब तबका प्रदूषण से प्रभावित होता है और उसकी दो वक्त की रोटी भी छिन जाती है। इस पर सरकार को सोचना होगा। पर्यावरण को बचाने की मुहिम में नवधा लोगों के लिए मिसाल बन गई है।

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