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मोती उगाने में जापान को टक्कर देने वाले भारतीय साइंटिस्ट डॉ. सोनकर को पद्मश्री से किया गया सम्मानित

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डॉक्टर अजय सोनकर ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सीपों के टिश्यू से मोती उगाने का काम प्रयागराज के अपने लैब में किया है। मोतियों की दुनिया में उनके अनोखे प्रयोगों और शानदार उपलब्धियों के लिए इसी साल पद्म श्री अवार्ड से नवाजा गया है।

इलाहाबाद के मिडिल क्लास फैमिली से संबंध रखने वाले डॉक्टर अजय सोनकर शुरुआती दिनों से ही भौतिकी, रसायन और गणित विषय में दक्ष थे। डॉ. सोनकर वारंगल रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे तभी साल 1991 में टेलीविजन पर पर्ल कल्चर पर एक प्रोग्राम देखा था। प्रोग्राम में जापानी साइंटिस्ट टिश्यू कल्चर का इस्तेमाल करके मोती निर्मित कर रहे थे। तभी उन्होंने यह सोच लिया कि वह भी मोती उगाएंगे।

बगैर इंटरनेट और महंगी प्रयोगशाला के यह काम मुश्किलों से भरा था। जापानी ऐसा एकमात्र देश था जिसे इस कल्चर से मोती बनाने की तकनीक मालूम थी। लेकिन डेढ़ साल के प्रयोगों के बाद डॉ सोनकर ने कृत्रिम मोती बनाकर देश ही नहीं दुनिया भर के साइंटिस्ट को हैरत में डाल दिया। इसी के साथ एक्वाकल्चरल वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर ने कल्चर मोती बनाने वाले देशों में भारत का नाम शुमार कराने का चमत्कार भी कर दिखाया।

बीते 30 सालों में डॉक्टर सोनकर ने अपने करियर में मोती उगाने को लेकर विभिन्न तरह की उपलब्धि अर्जित की है। विश्व भर के कम से कम 68 कंट्री में डॉक्टर सुनकर पर्ल कल्चर के बारे में अपना व्याख्यान दे चुके हैं। उनके दर्जनों अनुसंधान पत्र कई एक्वाकल्चरल जर्नल में पब्लिश्ड हो चुके हैं।

देश के तत्कालीन राष्ट्रपति और मिसाइल मैन के नाम से मशहूर ‘डॉ एपीजे अब्दुल कलाम’ ने डॉ सोनकर की खोज को देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि करार दिया था। पूर्व राष्ट्रपति डॉ सोनकर अपने खुद की प्रयोगशाला में स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे हैं। उनकी एक प्रयोगशाला यूपी के प्रयागराज और एक अंडमान में है। मोतियों की दुनिया में डॉक्टर सोनकर के निरंतर प्रयोगों और अनोखे शोध के लिए उन्हें इसी वर्ष पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है।

टिश्यू कल्चर से मोती बनाने की खासियत के विषय में बात की जाए तो इसमें सीप के अंदर जो टिश्यू होते हैं उन्हें बाहर निकालकर बनावटी वातावरण में रखकर मोती उगाए जाते हैं। इसमें मोती उगाने के लिए सीप की आवश्यकता नहीं होगी। सीप के लिए जरूरी समुद्री इन्वायरमेंट की भी जरूरत नहीं होगी। समुद्री जीव जंतुओं की दुनिया से जुड़ी हुई साइंटिफ़िक जर्नल ‘एक्वाक्लचर यूरोप सोसायटी’ के सितंबर, 2021 के अंक में डॉक्टर अजय सोनकर के इस नए अनुसंधान को प्रकाशित किया गया है।

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