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गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए रिटायरमेंट में मिले 40 लाख रुपए की दान, दूध बेच व रिक्शा चला बने थे शिक्षक

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हाल ही में मध्यप्रदेश के पन्ना के रहने वाले विजय कुमार चौरसिया प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के पद से अवकाश प्राप्त हुए हैं। रिटायरमेंट में मिले 40 लाख रुपए उन्होंने गरीब बच्चों की भलाई के लिए दान कर दिया है। शिक्षक के इस फैसले की तारीफ चारों और हो रही है। विजय कुमार ने एक नई मिसाल पेश कर दी है।

विजय कुमार कहते हैं कि मैं लगभग 4 दशकों तक सेवा में रहा। मुझे लोगों का खूब स्नेह मिला। मेरे दोनों पुत्र पढ़ लिख कर अच्छी जिंदगी जी रहे हैं, तो ऐसे में, मैं रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले इतने पैसों का क्या करता? इसलिए मैंने जनरल प्रोविडेंट फंड और गरीबी मिलने वाले 40 लाख रुपए गरीब बच्चों की भलाई के लिए दान करने का फैसला किया।

विजय कुमार बेसहारा और असहाय बच्चों के लिए शुरू से ही आगे आते रहे हैं। पर्व, त्यौहार हो या ठंड का सीजन वह हमेशा बच्चों के बीच नए कपड़े और स्वेटर बांटते हैं। बच्चों की मदद करने में उन्हें एक अलग ही सुकून मिलता है।

अपने सेवा के अंतिम दिनों में विजय खंदिया स्कूल में कार्यरत थे, आदिवासी बाहुल्य इलाके में स्थित प्राथमिक स्कूल दसवीं वर्ग तक तक पढ़ाई होती है। कई वर्षों से विजय यह अनुभव कर रहे थे कि इस इलाके के बच्चे आर्थिक तंगी के चलते बोर्ड द्वारा तय परीक्षा फीस भरने में असमर्थ होते हैं। गत वर्ष 8 बच्चे आर्थिक तंगी के चलते परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सके।

इलाके के अधिकांश लोगों का जीवन जंगलों के भरोसे चलता है। हालात यह है कि यहां के बच्चों के पास पहनने के लिए अच्छे पेंट और शर्ट भी नहीं होते हैं। इसी दशा को देखते हुए विजय कुमार ने रिटायरमेंट के एक साल पहले ही यह फैसला कर लिया था कि सरकार द्वारा मिले पैसे को वे दान कर देंगे।

विजय कुमार ने बताया कि इस फैसले को लेकर मैंने अपनी पत्नी हेमलता से भी विचार-विमर्श किया और उन्होंने इसके लिए तुरंत हामी भर दी। उनसे सहमति मिलने के बाद मैंने अपने जनरल प्रोविडेंट फंड में प्रत्येक महीने 10 हजार के जगह 20 हजार डिपोजिट करना शुरू कर दिया।

विजय ने अपने बचपन में गरीबी में गुजारी है। उन्होंने बताया कि 1960 के समय में जब देश विपरीत परिस्थितियों से गुजर रहा था और रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं थे तब मैंने जैसे तैसे करके आठवीं पास की लेकिन आर्थिक तंगी होने के चलते मैंने दूध बेचना और रिक्शा चलाना शुरु कर दिया।

पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े विजय पिता के साथ छोटी सी जमीन पर खेती करते थे। महज 14 साल की उम्र में ही विजय ने अपने कंधों पर परिवार का भार उठा लिया। स्थिति अच्छी होने के बाद तीन चार साल बाद फिर से पढ़ाई शुरू कर दी। साल 1982 में पॉलिटिकल साइंस में मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद उनका चयन प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा के तौर पर हुआ।

विजय बेहद सिद्धांतवादी शख्सियत हैं। वे कहते हैं कि मैंने अपना जीवन में काफी संघर्ष में जिया है और एक चीज सीखी है कि अच्छी राह पर चलने से हमेशा हमारे साथ अच्छा ही होता है। विजय अपने फैसले से बेहद खुश हैं। विजय का मानना है कि शिक्षा इकलौता ऐसा हथियार है, जिससे गरीबी को हराया जा सकता है। जीवन के अंतिम क्षणों तक विजय पढ़ाई लिखाई मैं बच्चों की हेल्प करते रहेंगे।

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